कारक – Karak in Hindi, परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण | Karak in Hindi With Examples 2023

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Karak in Hindi: कारक- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उसके सम्बन्ध का बोध होता है, उसे कारक कहते हैं। हिन्दी में आठ कारक होते हैं – कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण और सम्बोधन। विभक्ति या परसर्ग – जिन प्रत्ययों से कारकों की स्थितियों का बोध होता है, उन्हें विभक्ति या परसर्ग कहते हैं।

कारक – Karak in Hindi, परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण

कारक के विभक्ति चिह्न या परसर्ग (Karak in Hindi)

कारक विभक्ति – संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों के बाद ‘ने, को, से, के लिए’, आदि जो चिह्न लगते हैं वे चिह्न कारक ‘विभक्ति’ कहलाते हैं। अथवा – व्याकरण में शब्द (संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण) के आगे लगा हुआ वह प्रत्यय या चिह्न विभक्ति कहलाता है जिससे पता लगता है कि उस शब्द का क्रियापद से क्या संबंध है।

कारक के उदाहरण (Karak in hindi with Examples)

राम ने रावण को बाण मारा।

इस वाक्य में, “राम” कार्ता कारक है, “रावण” कर्म कारक है, और “बाण” को संप्रदान कारक कहा जाता है।

मैंने उसे एक पत्र लिखा।

इस वाक्य में, “मैं” कार्ता कारक है, “उसे” को सम्प्रदान कारक कहा जाता है, और “पत्र” को कर्म कारक कहा जाता है।

वह रंगीन फूलों से गुलदस्ता बनाता है।

इस वाक्य में, “वह” कार्ता कारक है, “फूलों” को अपादान कारक कहा जाता है, और “गुलदस्ता” को करण कारक कहा जाता है।

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कारक के भेद (करक कितने प्रकार के होते हैं)

हिन्दी व्याकरण में कारक के आठ भेद या प्रकार हैं- कर्त्ता कारक, कर्म कारक, करण कारक, सम्प्रदान कारक, अपादान कारक, संबंध कारक, अधिकरण कारक और सम्बोधन कारक। जबकि संस्कृत में कारक की संख्या 6 (संबंध कारक, और सम्बोधन कारक को छोड़कर) मानी जाती हैं।

  1. कर्त्ता कारक
  2. कर्म कारक
  3. करण कारक
  4. सम्प्रदान कारक
  5. अपादान कारक
  6. संबंध कारक
  7. अधिकरण कारक
  8. सम्बोधन कारक

ये हैं कारक के 8 प्रकार हिंदी व्याकरण में।

कारको का सामान्य परिचय-

कारकचिह्नअर्थ
कर्ता कारकनेकाम करने वाला
कर्म कारककोजिस पर काम का प्रभाव पड़े
करण कारकसे, द्वाराजिसके द्वारा कर्ता काम करें
सम्प्रदान कारकको,के लिएजिसके लिए क्रिया की जाए
अपादान कारकसे (अलग होना)जिससे अलगाव हो
सम्बन्ध कारकका, की, के; ना, नी, ने; रा, री, रेअन्य पदों से सम्बन्ध
अधिकरण कारकमें,परक्रिया का आधार
संबोधन कारकहे! अरे! अजी!किसी को पुकारना, बुलाना

1. कर्त्ता कारक की परिभाषा

कर्ता कारक हिंदी व्याकरण में एक ऐसा कारक है जो किसी वाक्य में क्रिया के प्रकटक (क्रिया को प्रकट करने वाले) के रूप में काम करता है। यह कारक वाक्य में कर्ता की पहचान कराने और व्यक्त करने के लिए प्रयोग किया जाता है। कर्ता कारक वाक्य में किसी व्यक्ति, जानवर, पक्षी, स्थान, वस्तु, आदि को बताता है। यह कारक वाक्य का मुख्य भूमिका निभाता है और उसे संपूर्ण वाक्य का मुख्य अंग बनाता है।

उदाहरण के लिए:

  • मेरा दोस्त खेल रहा है।

यहां ‘मेरा दोस्त’ को कर्ता कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

  • वह विद्यालय जा रहा है।

यहां ‘वह’ को कर्ता कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

  • माता पिता घर पर हैं।

यहां ‘माता पिता’ को कर्ता कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

कर्ता कारक वाक्य में क्रिया के साथ मिलकर कार्य की प्रकटि (क्रिया को प्रकट करने वाले) को पूरा करता है और उसे पूर्ण वाक्य का एक महत्वपूर्ण अंग बनाता है।

2. कर्म कारक की परिभाषा

कर्म कारक हिंदी व्याकरण में एक ऐसा कारक है जो किसी वाक्य में क्रिया के कर्ता के द्वारा किये जाने वाले कार्य को प्रकट करता है। यह कारक वाक्य में क्रिया के कर्ता के द्वारा किए जाने वाले कार्य को बताता है और उसे प्रमुखता देता है। कर्म कारक वाक्य में किसी क्रिया के प्रतिष्ठान, प्रगटन या प्रमाणित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके माध्यम से वाक्य में किसी कार्य को किया जाने वाले व्यक्ति या वस्त्रादि को बताया जाता है।

उदाहरण के लिए:

  • राम ने किताब पढ़ी।

यहां ‘राम’ को कर्म कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

  • मैंने खाना खाया।

यहां ‘मैं’ को कर्म कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

  • उसने गीत गाया।

यहां ‘उसने’ को कर्म कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

कर्म कारक वाक्य में क्रिया के साथ मिलकर किये जाने वाले कार्य की प्रकटि को पूरा करता है और उसे पूर्ण वाक्य का महत्वपूर्ण अंग बनाता है।

3. करण कारक की परिभाषा

करण कारक हिंदी व्याकरण में एक ऐसा कारक है जो किसी वाक्य में क्रिया के कर्म को पूरा करने वाले कारण या साधन को प्रकट करता है। यह कारक वाक्य में क्रिया को करने के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरण, साधन, स्थान, विधि, वजह आदि को बताता है। करण कारक वाक्य में क्रिया को करने के लिए कारण के रूप में प्रयोग किया जाता है और उसे प्रमुखता देता है।

उदाहरण के लिए:

  • मैं टिप्पणी करके उसका मनोबल बढ़ाता हूँ।

यहां ‘टिप्पणी करके’ को करण कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

  • वह गिटार बजाकर सबको मोह लेता है।

यहां ‘गिटार बजाकर’ को करण कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

  • उसने दौड़ते हुए बस पकड़ी।

यहां ‘दौड़ते हुए’ को करण कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

करण कारक वाक्य में क्रिया को करने के साथ मिलकर कार्य की प्रकटि को पूरा करता है और उसे पूर्ण वाक्य का महत्वपूर्ण अंग बनाता है।

4. संप्रदान कारक की परिभाषा

संप्रदान कारक हिंदी व्याकरण में एक ऐसा कारक है जो किसी वाक्य में क्रिया के प्राप्त करने वाले को प्रकट करता है। यह कारक वाक्य में क्रिया के प्राप्त करने का कारक होता है और उसे प्रमुखता देता है। संप्रदान कारक वाक्य में किसी के द्वारा या किसी से कुछ प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह व्यक्ति, संगठन, स्थान, समय, उपकरण, आदि को प्रदर्शित करता है जिनसे क्रिया को प्राप्त किया जाता है।

उदाहरण के लिए:

  • मैं उससे पुस्तक लेता हूँ।

यहां ‘उससे’ को संप्रदान कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

  • वह आपके पास सलामी लेती है।

यहां ‘आपके पास’ को संप्रदान कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

  • उसने घर पर शपथ ली।

यहां ‘घर पर’ को संप्रदान कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

संप्रदान कारक वाक्य में किसी से कुछ प्राप्त करने के साथ मिलकर कार्य की प्रकटि को पूरा करता है और उसे पूर्ण वाक्य का महत्वपूर्ण अंग बनाता है।

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5. अपादान कारक की परिभाषा

अपादान कारक हिंदी व्याकरण में एक ऐसा कारक है जो किसी वाक्य में क्रिया के अपादान या धारण करने वाले को प्रकट करता है। यह कारक वाक्य में क्रिया के अपादान या धारण का कारक होता है और उसे प्रमुखता देता है। अपादान कारक वाक्य में किसी को बताता है कि क्रिया के लिए उपयोग होने वाला कारक या सामग्री क्या है।

उदाहरण के लिए:

  • मैं गुब्बारे के लिए रंग खरीदता हूँ।

यहां ‘गुब्बारे के लिए’ को अपादान कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

  • वह चित्र के लिए पैंट खरीदती है।

यहां ‘चित्र के लिए’ को अपादान कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

  • उसने रेलवे स्टेशन के लिए टिकट बुक किया।

यहां ‘रेलवे स्टेशन के लिए’ को अपादान कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

अपादान कारक वाक्य में किसी के अपादान या धारण के साथ मिलकर कार्य की प्रकटि को पूरा करता है और उसे पूर्ण वाक्य का महत्वपूर्ण अंग बनाता है।

6. संबंध कारक की परिभाषा

संबंध कारक हिंदी व्याकरण में एक ऐसा कारक है जो किसी वाक्य में क्रिया के संबंध या निर्देश को प्रकट करता है। यह कारक वाक्य में क्रिया के संबंध या निर्देश का कारक होता है और उसे प्रमुखता देता है। संबंध कारक वाक्य में किसी के साथ किये जाने वाले सम्बन्ध, संबंध, व्यक्ति, स्थान, समय, कारण, प्रयोजन, आदि को प्रदर्शित करता है जिनके अनुसार क्रिया को किया जाता है।

उदाहरण के लिए:

  • राम घर चला गया।

यहां ‘घर’ को संबंध कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

  • मैं स्कूल जा रहा हूँ।

यहां ‘स्कूल’ को संबंध कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

  • उसने अपने मित्र के लिए उपहार खरीदा।

यहां ‘अपने मित्र के लिए’ को संबंध कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

संबंध कारक वाक्य में किसी के संबंध या निर्देश के साथ मिलकर कार्य की प्रकटि को पूरा करता है और उसे पूर्ण वाक्य का महत्वपूर्ण अंग बनाता है।

7. अधिकरण कारक की परिभाषा

अधिकरण कारक हिंदी व्याकरण में एक ऐसा कारक है जो किसी वाक्य में क्रिया के अधिकरण, स्वामित्व, अधिकार या विचार को प्रकट करता है। यह कारक वाक्य में क्रिया के अधिकरण का कारक होता है और उसे प्रमुखता देता है। अधिकरण कारक वाक्य में किसी के स्वामित्व, अधिकार, प्राधान्यता, विचार, स्थान, समय, संगठन, आदि को प्रदर्शित करता है जिनके अनुसार क्रिया को किया जाता है।

उदाहरण के लिए:

  • मेरे बागीचे में फूल खिल रहे हैं।

यहां ‘मेरे बागीचे में’ को अधिकरण कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

  • उसके पास एक बड़ी गाड़ी है।

यहां ‘उसके पास’ को अधिकरण कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

  • हमारे द्वारा योजित किया गया समारोह बहुत सफल रहा।

यहां ‘हमारे द्वारा’ को अधिकरण कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

अधिकरण कारक वाक्य में किसी के अधिकरण, स्वामित्व, अधिकार या विचार के साथ मिलकर कार्य की प्रकटि को पूरा करता है और उसे पूर्ण वाक्य का महत्वपूर्ण अंग बनाता है।

8. संबोधन कारक की परिभाषा

संबोधन कारक हिंदी व्याकरण में एक ऐसा कारक है जो किसी वाक्य में क्रिया के प्रति संबोधन, अभिभाषण, प्रश्नार्थक संज्ञान या निमंत्रण को प्रकट करता है। यह कारक वाक्य में क्रिया के प्रति संबोधन या अभिभाषण का कारक होता है और उसे प्रमुखता देता है। संबोधन कारक वाक्य में किसी को सीधे आवाजित करने, प्रश्न पूछने, अभिभाषण करने या निमंत्रण देने के लिए प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण के लिए:

  • हे राम, चलो खाने चलें।

यहां ‘हे राम’ को संबोधन कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

  • आप कहाँ जा रहे हैं?

यहां ‘आप’ को संबोधन कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

  • बेटा, क्या तुम खेल रहे हो?

यहां ‘बेटा’ को संबोधन कारक के रूप में प्रयोग किया गया है।

संबोधन कारक वाक्य में किसी के प्रति संबोधन, अभिभाषण, प्रश्नार्थक संज्ञान या निमंत्रण के साथ मिलकर कार्य की प्रकटि को पूरा करता है और उसे पूर्ण वाक्य का महत्वपूर्ण अंग बनाता है।

विभक्तियों की प्रयोगिक विशेषताएं

विभक्तियों की प्रयोगिक विशेषताएं हिंदी व्याकरण में बहुत महत्वपूर्ण हैं। विभक्तियाँ शब्दों के रूप, संख्या, पुरुष और काल के अनुसार उनके भूमिका और संबंध को प्रदर्शित करने में मदद करती हैं। यह वाक्य के संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और उनके प्रयोग से भाषा का ठोस और संगठित होने में सहायता प्रदान करती हैं।

यहां कुछ महत्वपूर्ण विभक्तियों की प्रयोगिक विशेषताएं हैं:

  1. प्रथम विभक्ति (वाच्य विशेषण): प्रथम विभक्ति का प्रयोग संज्ञाओं को व्यक्ति, जीव, वस्तु, स्थान, और समय के आधार पर प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए- “राम खेल रहा है।”
  2. द्वितीय विभक्ति (संबंध विशेषण): द्वितीय विभक्ति का प्रयोग संज्ञाओं के बीच संबंध को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए- “राम के पास पुस्तक है।”
  3. तृतीय विभक्ति (हेतु विशेषण): तृतीय विभक्ति का प्रयोग किसी कार्य के करण, कारण, उपकरण, संख्या, आकार, दूरी, आदि को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए- “राम ने बाल खाये।”
  4. चतुर्थ विभक्ति (संबंध आपूर्ति): चतुर्थ विभक्ति का प्रयोग संज्ञाओं की संबंधितता और आपूर्ति को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए- “राम को पुस्तक मिली।”

इस तरह से, विभक्तियाँ हिंदी वाक्यों की भाषाई संरचना को सुगम बनाती हैं और उनके प्रयोग से भाषा की नियमितता और व्यवस्थितता को सुनिश्चित करती हैं।

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